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50 फीसदी ट्रक ड्राइवरों की नजर कमजोर, 34 हजार ड्राइवरों की आंखों की जांच के बाद हुआ खुलासा

Truck Driver: ट्रक ड्राइवरों को लेकर एक रिपोर्ट में हैरान करने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी ट्रक ड्राइवरों की आंखों में दिक्कत है. उनकी नजर कमजोर है. इस सर्वे में 34 हजार ट्रक ड्राइवरों का रैंडम आई टेस्ट किया गया.

एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 50 फीसदी ट्रक ड्राइवरों की नजर कमजोर है एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 50 फीसदी ट्रक ड्राइवरों की नजर कमजोर है

भारत की सड़कों पर ट्रक चलाने वाले 50 फीसदी से अधिक ड्राइवर किसी ना किसी तरह की दृष्टि दोष की समस्या से जूझ रहे हैं. इस चौंकाने वाले तथ्य का पता तब चला, जब नोएडा के एक प्राइवेट अस्पताल और एक इंटरनेश्नल एनजीओ ने 34,000 ट्रक ड्राइवरों की आंखों का परीक्षण किया. नोएडा के ICARE आई हॉस्पिटल ने साइटसेवर्स इंडिया नाम की एनजीओ की मदद से हाईवे पर ट्रक चला रहे ड्राइवर्स की आंखों का रैंडम परीक्षण किया. ये आंकड़ा सितंबर 2018 से दिसंबर 2022 के बीच का है.

नज़र कमजोर लेकिन चश्मे का इस्तेमाल नहीं-
रैंडम टेस्ट में 38 फीसदी ट्रक ड्राइवरों में नज़दीकी तौर पर देखने में समस्या पाई गई, तो वहीं 8% ट्रक ड्राइवरों को दूर की दृष्टी संबंधित समस्याओं से ग्रस्त पाया गया. जबकि इनमें से 4% लोग ऐसे थे, जिनमें दूर और नजदीक दोनों तरह का दृष्टि दोष था. बड़ी बात ये है कि इनमें से कोई भी ट्रक ड्राइवर चश्मे का इस्तेमाल करता हुआ नहीं पाया गया. नज़दीक की वस्तुओं को ठीक से नहीं देख पाने की समस्या से ग्रस्त ज़्यादातर लोगों की उम्र 36 से 50 के बीच थी. आपको बता दें कि जिन लोगों में दूर की वस्तुओं को ठीक से नहीं देख पाने की समस्या पाई गई, उनमें से ज़्यादातर लोगों की आयु 18 से 35 वर्ष के बीच थी.

ड्राइवर्स को पता ही नहीं था कि उनकी नजर कमजोर है-
ICARE आई हॉस्पिटल के सीईओ डॉ. सौरभ चौधरी बताते हैं कि हम इस बात से अच्छी तरह से  वाकिफ हैं कि भारत में बड़ी तादाद में होने वाले सड़क हादसों में ड्राइवरों में व्याप्त दृष्टि दोष की समस्या एक बड़ी वजह होती है. इसीलिए हमने ये काम शुरु किया.  हमने जिन भी ट्रक ड्राइवरों के आंखों की जांच की, वे इस बात से कतई वाकिफ नहीं थे कि उनमें किसी तरह का कोई दृष्टि दोष है. इतना ही नहीं, इनमें से किसी ने कभी भी अपनी आंखों का परीक्षण नहीं कराया था. ऐसे में उनके किसी हादसे का शिकार होने की प्रबल आशंका मौजूद थी. आंकड़ों के मुताबिक भारतीय सड़कों पर 90 लाख से भी ज्यादा ड्राइवर ट्रक चलाते हैं. 
डॉक्टर सौरभ कहते हैं कि ज़मीनी स्तर पर किये गये हमारे अध्ययन के आंकड़ों के मुताबिक अनुमानित तौर पर इनमें से आधे लोगों को किसी ना किसी तरह की नेत्र से जुड़ी समस्याएं जरूर रही होंगी. अगर ये ड्राइवर किसी पश्चिमी देश में होते तो उन्हें चश्मे और आंखों के सही परीक्षण के बगैर वहां पर ड्राइविंग के लिए अयोग्य करार दिया जाता.

ट्रक ड्राइवर्स को मौके पर देते हैं चश्मा-
डॉ. सौरभ चौधरी बताते हैं कि 2018 से हमने उन जगहों पर कैंप लगवाना शुरु किया, जहां ट्रक ड्राइवर्स आराम करते हैं या खाना खाने के लिए रुकते हैं. हमने यूपी हरियाणा और राजस्थान की कई लोकेशन पर इस तरह से कैंप किया. ट्रक ड्राइवरों की आंखों की अच्छी तरह से पड़ताल करने के बाद हमारे सामने यह तथ्य सामने आया कि इनमें से ज़्यादातर ट्रक ड्राइवर 'रिफ़्रैक्टिव एरर' (दूर और नजदीकी वस्तुओं को ठीक से नहीं देख पाने की स्थिति) की समस्या से ग्रसित हैं. ऐसे में हमने अपने पार्टनर साइटसेवर्स इंडिया के साथ मिलकर पीड़ित ट्रक ड्राइवरों को मौके पर ही विभिन्न तरह के रेडी टू क्लिप (R2C) चश्मे मुहैया कराए. जिन भी ट्रक ड्राइवरों में 'रिफ़्रैक्टिव एरर' जटिल किस्म का पाया गया, उन ट्रक ड्राइवरों को अगले गंतव्य पर कस्टमाइज़्ड किस्म के चश्मे प्रदान किये गये. हमने विभिन्न तरह की टेक्नोलॉजी, उपकरणों और ऐप का इस्तेमाल करते हुए ट्रक ड्राइवरों को विभिन्न तरह के चश्मे मुहैया कराए ताकि वे महामार्गों पर चश्मा पहनकर ही ड्राइविंग करें.

जागरूकता और सुविधाओं की कमी-
डॉक्टर के सौरभ चौधरी के मुताबिक ट्रक ड्राइवर जिस क्षेत्र में काम करते हैं, उसे एक असंगठित क्षेत्र माना जाता है और यही वजह है कि ट्रक ड्राइवर अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर‌ ठीक से ध्यान नहीं दे पाते हैं. इनमें से ज़्यादातर ड्राइवर ग्रामीण इलाकों से आते हैं, जहां आंखों के‌ परीक्षण की किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं होती है. ऐसे में ना तो कभी किसी चश्मे के लिए उनका कोई परीक्षण किया जाता है और ना ही नेत्र से जुड़ी किसी अन्य तरह की समस्या के लिए. डॉक्टर सौरभ त्रिवेदी आगे बताते हैं कि हमारा अनुभव बताता है कि लम्बे समय तक ट्रक चलाते रहने के चलते ड्राइवरों की आंखें पूरी तरह से सूख जाती हैं और उनमें गंभीर रूप से नेत्र संबंधी एलर्जी जैसी स्थिति का निर्माण हो जाता है. इनमें से 60 से अधिक उम्र के ज़्यादातर ड्राइवरों को मोतियाबिंद भी हो जाता है. ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि सभी ड्राइवरों का नियमित रूप से नेत्र परीक्षण करना आवश्यक हो जाता है जो ख़ुद उनकी सुरक्षा के साथ-साथ दूसरों की सुरक्षा के लिए भी बेहद ज़रूरी है.

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