Widow practice 
 Widow practice महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के शिरोल तहसील में स्थित हेरवाड़ गांव की पंचायत ने एक बहुत ही प्रगतिशील फैसला लेकर पूरे देश के लिए मिसाल कायम की है. ग्राम पंचायत ने पुरानी रूढीवादी परंपरा को खत्म करते हुए अब किसी भी महिला के विधवा होने पर उसकी चूड़ियां तोड़ने, माथे से कुमकुम पोंछने और गले से मंगलसूत्र निकालने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया है. इस प्रथा को प्रतिबंधित करने वाला यह महाराष्ट्र का पहला गांव बन गया है.
और यह सब मुमकिन हो पाया गांव की कुछ साहसी महिलाओं के आवाज उठाने के कारण, जिनमें से एक हैं वैशाली पाटिल. साल 2013 में अपने पति की मृत्यु के बाद वैशाली का जीवन आसान नहीं था. उन्हें चारों तरफ से भेदभाव का सामना करना पड़ा. उन्हें न केवल अपने परिवार के वित्तीय मामलों में, बल्कि सामाजिक समारोहों से भी उन्हें दूर रखा गया.
जीवन में नहीं घुलने दी दकियानूसी विचारों की निराशा
42 वर्षीय वैशाली ने समाज के इस भेदभाव का विरोध किया. उन्होंने विधवापन के प्रतिगामी सदियों पुराने रीति-रिवाजों को छोड़कर, सफेद की जगह रंगीन साड़ी पहनीं और वह माथे पर हमेशा बिंदी लगाती हैं. उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए काम किया.
पीटीआई से बात करते हुए पाटिल ने याद किया कि एक बार वह एक महिला समारोह के आयोजकों में से एक थीं. उन्होंने इस कार्यक्रम में विजेताओं को देने के लिए दो साड़ियां खरीदी थीं. पर विधवा होने के कारण उन्हें विजेताओं को सम्मानित करने का मौका नहीं दिया गया.
वह इस सार्वजनिक अपमान को सहन नहीं कर सकीं और बहुत रोई. विडंबना यह थी कि जिन लोगों ने उन्हें सम्मान देने से मना किया, वे स्वयं महिलाएं थीं. इसके अलावा कई बार घर के छोटे-बड़े फंक्शन में भी उन्हें भेदभाव झेलना पड़ा. पर उन्होंने हार नहीं मानी और अपने दिल की सुनकर आगे बढ़ती रहीं.
बनाई अपनी अलग पहचान
वैशाली ने 2017 में ग्राम पंचायत चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 100 वोटों से हार गईं. उन्होंने तीन साल तक भाजपा के शिरोल तालुका अध्यक्ष के रूप में भी काम किया था. लेकिन उनका कहना है कि अब वह एक साधारण भाजपा कार्यकर्ता हैं. कोई क्या पहनता है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि एक महिला के रूप में सम्मान दिया जाए, भले ही आपका पति मर चुका हो या जिंदा हो.
एक और विधवा महिला, सुनीता बरगले, वैशाली की इस बात से सहमत थीं कि उन्हें अच्छे कपड़े पहनने और आभूषण पहनने की अनुमति से अधिक, समाज में सम्मान की आवश्यकता है. उनका कहना है कि ग्राम सभा का प्रस्ताव एक अग्रणी सामाजिक सुधार की दिशा में पहला कदम है, जिस पर उन्हें गर्व है.
ग्राम पंचायत की इस पहल का स्वागत महाराष्ट्र सरकार ने भी किया है और सभी ग्राम पंचायतों को इसका अनूसरण करने के लिए कहा है.