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Kaal Bhairav Katha: भगवान शिव से पहले क्यों होती है काल भैरव की पूजा, जानें पौराणिक कथा

वाराणसी में बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है. मान्यता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है. काशी में बाबा काल भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. इसके बाद भगवान शिव के आदेश पर काल भैरव काशी में ही बस गए.

Baba Kaal Bhairav (Photo/PTI) Baba Kaal Bhairav (Photo/PTI)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में काल भैरव मंदिर में दर्शन किए और उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया. काल भैरव देवता को भगवान शिव के रौद्र या उग्र रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि भगवान काल भैरव की पूजा से जीवन में सुख-शांति आती है. शास्त्रों के मुताबिक काल भैरव असीम शक्तियों के देवता हैं. इसलिए उनकी पूजा से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है. मान्यता है कि काल भैरव को वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी. जो भक्त ऐसा नहीं करेंगे, उनकी पूजा अधूरी मानी जाएगी.

काल भैरव के जन्म की कथा-
काल भैरव की उत्पत्ति को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. माना जाता है कि एक बार भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया कि कौन श्रेष्ठ है? काफी कोशिश के बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं निकला. सभी देवी-देवताओं से पूछा गया कि इन तीनों देवताओं में कौन श्रेष्ठ है? सभी देवताओं और ऋषियों ने विचार-विमर्श के बाद माना कि भगवान शिव ही श्रेष्ठ हैं. भगवान विष्णु ने इस फैसले को स्वीकार कर लिया. लेकिन भगवान ब्रह्मा नाराज हो गए और भगवान शिव को बुरा-भला कहने लगे. इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और इस क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ.

भगवान शिव के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए. काल भैरव ने ब्रह्मा के एक सिर को काट दिया. सभी देवता काल भैरव से शांत होने की विनती करने लगे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने काल भैरव से माफी मांगी. जिसके बाद वो शांत हुए. हालांकि काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा. जिसकी वजह से उनको दंड भोगना पड़ा. उनको कई सालों तक धरती पर भिखारी का रूप धारण कर भटकना पड़ा. जब वो काशी पहुंचे तो उनका दंड समाप्त हुआ. इसलिए काल भैरव को दंडपाणी कहा जाता है.

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काशी के कोतवाल हैं काल भैरव-
बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है. मान्यता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है. बाबा विश्वनाथ के मंदिर के पास एक कोतवाली भी है, जिसकी रक्षा खुद काल भैरव करते हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए काल भैरव ने अपने नाखून से कुंड की स्थापना की और उसमें स्नान किया. जिसकी उनको ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली. पाप से मुक्ति मिलने के बाद भगवान शिव प्रकट हुए और काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया. उसके बाद काल भैरव काशी में बस गए. भगवान शिव ने काल भैरव को इस नगरी की कोतवाली करने को भी कहा था.

पहले काल भैरव की पूजा, फिर बाबा विश्वनाथ की पूजा-
कहा जाता है कि बाबा काल भैरव मंदिर में अर्जी लगाने के बाद ही बाबा विश्वनाथ उसे सुनते है. कहा जाता है कि काशी में जिसने काल भैरव के दर्शन नहीं किए और बाबा विश्वनाथ की पूजा की, उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है और उसका फल भक्त को नहीं मिलता है.

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