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Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव कराने में कितने रुपए होते हैं खर्च, कहां से आते हैं Election Commission के पास पैसे, जानिए क्या होती है एक वोट की कीमत

Loksabha Election 2024: हमारे देश में आजादी के बाद पहली बार 1951-52 में लोकसभा का चुनाव हुआ था. उस समय इसमें करीब 17 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया था. उस समय इस चुनाव पर 10.5 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. इसके बाद 1957 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर यह खर्च लगातार बढ़ता गया.

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हाइलाइट्स
  • लोकसभा चुनाव 2019 में चुनाव कराने पर 6500 करोड़ रुपए हुए थे खर्च 

  • लोकसभा चुनाव 2024 में यह राशि और बढ़ सकती है

चुनाव आयोग (Election Commission) ने लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Election 2024) की तारीखों का ऐलान कर दिया है. 19 अप्रैल से चुनाव होगा. देशभर में 7 चरणों में वोट डाले जाएंगे. 4 जून को नतीजे आएंगे. चुनाव को लेकर जहां पूरे देश में सियासा पारा चढ़ा हुआ है, वहीं चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जोर-शोर से जुट गया है. आज हम आपको बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव कराने में कब और कितने रुपए खर्च हुए, एक वोट की कीमत क्या रही और ये रुपए आयोग के पास कहां से आते हैं?

1951-52 में पहली बार हुआ था लोकसभा चुनाव
हमारे देश में आजादी के बाद पहली बार 1951-52 में लोकसभा का चुनाव हुआ था. उस समय इसमें करीब 17 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया था. उस समय इस चुनाव पर 10.5 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. प्रति मतदाता 60 पैसे का खर्च आया था. इसके बाद 1957 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर यह खर्च लगातार बढ़ता गया.

लोकसभा चुनाव 2014 में जहां यह खर्च बढ़कर 3870.3 करोड़ रुपए हो गया तो वहीं लोकसभा चुनाव 2019 में कुल 6500 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. लोकसभा चुनाव 2004 में प्रति मतदाता 17 रुपए, 2009 में 12 रुपए, 2014 में 46 रुपए और लोकसभा चुनाव 2019 में प्रति वोटर 72 रुपए खर्च आए थे. लोकसभा चुनाव 2024 में यह राशि और बढ़ सकती है. 18वीं लोकसभा के लिए इस बार चुनाव होंगे. चुनाव आयोग के अनुसार इस लोकसभा चुनाव में 97 करोड़ से अधिक मतदाता भाग लेंगे. 

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किस लोकसभा चुनाव में कितने करोड़ रुपए हुए खर्च
1. 1951-52 में 10.5 करोड़ रुपए.
2. 1957 में 5.9 करोड़ रुपए.
3. 1962 में 7.3 करोड़ रुपए.
4. 1967 में 10.8 करोड़ रुपए.
5. 1971 में 11.6 करोड़ रुपए.
6. 1977 में 23 करोड़ रुपए.
7. 1980 में 54.8 करोड़ रुपए.
8. 1984-85 में 81.5 करोड़ रुपए.
9. 1989 में 154.2 करोड़ रुपए.
10. 1991-92 में 359.1 करोड़ रुपए.
11. 1996 में 597.3 करोड़ रुपए.
12. 1998 में 666.2 करोड़ रुपए.
13. 1999 में 947.7 करोड़ रुपए.
14. 2004 में 1016.1 करोड़ रुपए.
15. 2009 में 1114.4 करोड़ रुपए.
16. 2014 में 3870.3 करोड़ रुपए.
17. 2019 में 6500 करोड़ रुपए.  

लोकसभा चुनाव का कौन उठाता है खर्च
केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव का खर्च उठाती है. इसमें चुनाव आयोग के प्रशासनिक कामकाज से लेकर, मतदान के दौरान सिक्योरिटी, पोलिंग बूथ बनाने, ईवीएम खरीदने, मतदाताओं को जागरूक करने और वोटर आईडी कार्ड बनाने जैसे खर्च शामिल हैं. पहले बैलट पेपर से चुनाव होता था. लोकसभा चुनाव 2004 से ईवीएम के माध्यम से मतदान हो रहा है.

Election Commission के मुताबिक हर चुनाव में ईवीएम खरीद के खर्चे में भी इजाफा हुआ है. ईवीएम खरीद व मेंटिनेंश के लिए 2019-20 के बजट में 25 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे. 2023-24 के बजट में यह राशि बढ़कर 1891.8 करोड़ रुपए तक पहुंच गई. ईवीएम समेत कुछ खर्चों के लिए कानून और न्याय मंत्रालय भी बजट आवंटित करता है.

चुनाव का क्यों बढ़ा खर्च
लोकसभा चुनाव के खर्चे में बढ़ोतरी की वैसे तो कई कारण हैं लेकिन इसमें प्रमुख दो हैं. पहला मतदाताओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी और दूसरा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों से लेकर पोलिंग बूथ और संसदीय क्षेत्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. पहले लोकसभा चुनाव में जहां 53 पार्टियों के 1874 उम्मीदवारों ने 401 सीटों के लिए चुनाव मैदान में उतरे थे वहीं लोकसभा चुनाव 2019 में 673 पार्टियों के 8054 प्रत्याशी 543 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए चुनाव मैदान में थे. इसके साथ पूरे देश में कुल 10.37 लाख पोलिंग बूथों पर मतदान हुए थे.